पुरातात्विक स्थलों की सूची में नालन्‍दा, वैशाली, राजगीर, पटना, गया, आदि जगहों के नाम सबसे उपर हैं, पूरे बिहार के पुरातात्विक स्थलों की  बात की जाए तो इसकी संख्‍या ढाई हजार से उपर है, और इस तरह के नये  नये स्‍थल हमेशा प्रकाश में आते रहते हैं, इसकी संख्‍या दिन प्रतिदिन बढती ही जा रही है, यदि हम बिहार के पुरातात्विक स्‍थलों की बात करें तो, अब तक जितने क्षेत्रों की जानकारी मिली है, उसका करीब पांच प्रतिशत ही आम लोगों के समक्ष आ पाया है, वह भी आधा अधूरा, इतिहास, विरासत एवं पुरातात्विक महत्‍व के  ये धरोहर आज भी एक लिस्‍ट के रूप में फाइलों में बन्‍द है, इन स्‍थलो को आज भी एक अच्‍छे रिसर्चर का इन्‍तजार है, जो इसे काल के  गर्त से निकालकर इसकी प्रतिष्‍ठा को पुर्नस्‍थापित कर सके,

सिर्फ समस्‍तीपुर जिला में एक अनुसंधान के अनुसार 135 से ज्‍यादा  पुरातात्विक स्‍थलों का नाम सामने आ चुका है, जबकि इस लिस्‍ट में समस्‍तीपुर के एक दर्जन से ज्‍यादा ऐसे स्‍थल हैं जो पर्यटन की दृष्टि से महतवपूर्ण है,  जिनका नाम इस सूचि में नहीं है, गौर करने वाली बात यह है कि  अभी सिर्फ समस्‍तीपुर के पांड के उत्‍खनन से ही यहां के ऐतिहासिक आयामों को देखने की एक नई दृष्टि रिर्सचरो को मिली है,  अभी ऐसे दर्जनों स्‍थल उत्‍खनन की राह देख रहे हैं, 

न्‍यूज भारत टीवी, पहली बार,  इन पुरातात्विक स्‍थलों की इस अनकही कड़ी को एक धागे में पिड़ोने का प्रयास कर रही है, समस्‍तीपुर जिला के 135  पुरातात्विक स्‍थलों के  अलावे अन्‍य स्‍थल जो अनुसंधान के क्रम में ज्ञात हुए है, उसकी भौतिक स्थिति आप दर्शको को दिखाने का प्रयास कर रही है, ताकि आप भी जान सकें, कि हमारे अगल बगल में, पास पड़ोस में क्‍या कुछ ऐसा है , जिसे संरक्षित रखने एवं सहेजने की जरूरत हैं,

समस्‍तीपुर में नवपाषाण काल से लेकर गुप्‍तकाल तक के छह सांस्‍कृतिक चरणों का विकास सामने आ चुका है, इस क्षेत्र में शासन के हर दौर का प्रभाव यहां दिखता है, ओइनवार, खण्‍डेवाल , द्रोणवार, राजवंश की जड़े,  इसकी मिट्टी से गहरी जुड़ी है, 1874 में रेल का इंजन पहली बार इसी जिले में दौड़ लगाई थी,  इस की महत्‍ता सिर्फ इसी बात से नहीं  है,

साहित्‍य, संगीत, विज्ञान, दर्शन, आदि कई एक ऐसे क्षेत्र है , जहां,  यहां के विद्वानों की धाक अंतरराष्‍ट्रीय स्‍तर आज भी सुनी जाती है, अंग्रेजो के आने से पहले ही, बंगाल के नवाब से लेकर दिल्‍ली, जौनपुर के शासकों को सोना उगलने वाली यहां की उर्वर भूमि का पता लग चुका था, और बहुत पहले  से ही यह क्षेत्र,  सोम बस्‍ती के रूप में पुकारा जाने लगा था ,जो आगे चलकर यह समस्‍तीपुर के रूप में विख्‍यात हुआ,सोम आर्यों के देवता थे, जिनके नाम पर यह समस्‍तीपुर हुआ होगा,  नामाकरण के सम्‍बन्‍ध में कुछ लोगों का मानना है कि यह शहर हाजी शम्सुद्दीन इलियास के द्वारा बसाये जाने के कारण, शम्सुद्दीनपुर और फिर समस्‍तीपुर हुआ, समस्‍तीपुर मिथिला का प्रवेश द्वार है,लेकिन कहा जाता है कि इसके  क्षेत्र में आकर मिथिला  की समस्‍त अस्तियां यहां खत्‍म हो जाती है, इसलिए यह समस्‍तीपुर हुआ,  समस्तीपुर का परंपरागत नाम सरैसा है, कुछ लोगों का मानना है कि इसका प्राचीन नाम सोमवती था जो बदलकर सोम वस्तीपुर , फिर समवस्तीपुर और समस्तीपुर हो गया,

समस्तीपुर के दलसिंह सराय अनुमंडल  के पगड़ा पंचायत में उत्‍खनन के दौरान कुषाण शासकों के कई सिक्के एवं प्राप्‍त सिलिंग पर  ब्राह्मी लिपि में समस शब्‍द लिखा हुआ मिला है, जो इसके समस्‍तीपुर के नामाकरण पर  ऐतिहासिक रौशनी डालता है, नाम के मसलों से इतर समस्‍तीपुर के पुरातात्विक  इतिहास को  देखें तो, इसका प्राचीन वैभव सम्‍पन्‍न है, नालन्‍दा , राजगीर, वैशाली , गया,  की तरह  यहां के पुरातात्विक  स्‍थलो का उद्धार होना शुरू हो जाये तो,समस्‍तीपुर पुरातत्व एवं पर्यटन के मामले  में  बिहार के इतिहास में  एक नया  एवं गंभीर अध्‍याय  जोड़ने  में सक्षम हैं, 

समस्‍तीपुर के पुरातात्विक  स्‍थलों में  दलसिंह सराय के पांड पर विस्‍तृत खोज एवं उद्भेदन के कारण बिहार में चेचर, चिरान्‍द, के बाद पांड की ओर दुनिया की नजर पड़ी  है, लेकिन  दलसिंह सराय के ही गरीया डीह से कुषाणकाल एवं  विशनपुर मेढ़ी, और बेला मेघ से गुप्‍त काल के अवशेष प्राप्‍त हो रहे हैं,

              हसनपुर का नेमी डीह –बोहरना, पांड से कम महत्‍वपूर्ण नहीं है, अनुमान हैं कि इस स्‍थल की महत्‍ता ताम्र पाषण कालीन  है, सरायरंजन प्रखण्‍ड का गनपुर डीह -भगवतपुर का समबन्‍ध कुषाण काल तो मोरवा प्रखण्‍ड के सूरजपुर का विकास का एक काल खण्‍ड  कुषाण कालिन प्रतीत होता है, सिंधिया प्रखण्‍ड का वारी गांव,  मोरवा प्रखण्‍ड का ही  मोरवा गढ़ गुप्‍तकाल , तो उजियारपुर का भगवानपुर कमला  से गुप्‍त कालिन अवशेषों का  प्राप्‍त होना समस्‍तीपुर के  समृद्ध विरासत परम्‍परा को इंगित करता है, ये चंद  नाम तो हांडी में पक रहे एक दो चावल के समान है,  समस्‍तीपुर के इतिहास एवं विरासत परम्‍परा का विस्‍तृत विजुअल कवरेज आप तक लानें के लिए न्‍यूज भारत टीवी, प्रयत्‍नशील है,

निषादों की तीर्थ स्‍थली बाबा अमरसिंह स्‍थान षिउरा, गन्‍ना किसानों के महाकार एवं डोमो के लोकदेवता श्‍याम सिंह का स्‍थल देवधा, कबीर पंथियों  का रोसड़ा कबीर मठ,पटोरी के धमौन में दरियापंथियों का सबसे बड़ा स्‍थल  संत दरिया आश्रम , यादवों का तीर्थस्‍थल निरंजन स्‍थान,  शिव भक्‍तों का प्रिय स्‍थल विद्यापति धाम, सद्भाव  का प्रतीक मोरबा का खुदनेश्‍वर स्‍थान, एवं रोसड़ा कॉलेज के पूरब स्थित बाबा खास  का मजार, आयशा बीबी का किला, एवं आजादी के किस्‍से को बयां करता चन्‍द्रभवन, ऐसे कितने ही नाम लोगों के जेहन में हैं, जो समस्‍तीपुर के इतिहास एवं विरासत परम्‍परा को आज भी अक्षुण्‍ण रखे हुए है, शिवाजी प्रखण्‍ड  के  करियन डीह से उदयनाचार्य के द्वारा  श्रुति संदेश पत्रिका  का निकाला जाना ऐतिहासिक महत्‍व का विषय  है, श्रुति संदेश प्राचीन भारत का संभवत: प्रथम  हस्‍त लिखित पत्रिका है,  

समस्‍तीपुर  के कण-कण में ऐतिहासिकता  है, आज समय की मोटी धूल की परत यहां जम चुकी है, समस्‍तीपुर राजा जनक के मिथिला प्रदेश का अंग रहा। विदेह राज्य का अंत होने पर यह वैशाली गणराज्य का अंग बना। इसके बाद मगध के मौर्य, शुंग, कण्व और गुप्त शासकों के महान साम्राज्य का हिस्सा रहा। ह्वेनसांग के विवरणों से यह पता चलता है कि यह प्रदेश हर्षवर्धन के साम्राज्य के अंतर्गत था। 13वीं सदी में पश्चिम बंगाल के मुसलमान शासक हाजी शम्सुद्दीन इलियास के समय मिथिला एवं तिरहुत क्षेत्रों का बंटवारा हो गया। उत्तरी भाग  ओईनवार राजवंश  के कब्जे में था, जबकि दक्षिणी एवं पश्चिमी भाग शम्सुद्दीन इलियास के अधीन रहा।

              समस्‍तीपुर जिला में  135 से ज्‍यादा  पुरातात्विक स्‍थल आज उद्धार की बाट जोह रहे है,  जबकि इस लिस्‍ट में समस्‍तीपुर के एक दर्जन से ज्‍यादा ऐसे स्‍थल हैं जो पर्यटन की दृष्टि से महतवपूर्ण है, जिनका नाम इस सूचि में नहीं है, अभी सिर्फ समस्‍तीपुर के पांड के उत्‍खनन से ही यहां के ऐतिहासिक आयामों को देखने की एक नई दृष्टि रिर्सचरो को मिली है,  अभी ऐसे दर्जनों महत्‍वपूर्ण स्‍थल उत्‍खनन की राह देख रहे हैं,जो यहां के सामाजिक ताना बाना, विकास का क्रम, ध्‍वंस के कारणों के ऐतिहासिक विश्‍लेषण पर नये तथ्‍य की ओर इशारा करेंगे,  

बिहार के सबसे बड़े शोध संस्‍थान काशी प्रसाद जायसवाल  शोध संस्‍थान  के मुताबिक  समस्‍तीपुर के एक सौ पैंतीस  से ज्‍यादा पुरातात्विक स्‍थलों का नाम सामने आ चुका है, कई एक स्‍थल ऐसे है जहां बड़ी आबादी  बस्‍ती के रुप में  आबाद हो चुकी  है, जहां पुरातात्विक  विरासत को ढ़ूढ़ना,  उसकी पहचान करना  अब मुश्किल भरा  काम हो गया है,पर इसकी महत्‍ता से इनकार नहीं किया जा सकता है, 

न्‍यूज भारत टीवी, पहली बार आपको इन पुरातात्विक स्‍थलों की इस अनकही कड़ी को एक धागे में पिड़ोने का प्रयास कर रही है, समस्‍तीपुर जिला के 135  पुरातात्विक स्‍थलों को अलावे अन्‍य स्‍थल जो अनुसंधान के क्रम में ज्ञात हुए है, उसकी भौतिक स्थिति आप दर्शको को दिखाने का प्रयास कर रही है, ताकि आप भी जान सकें,कि हमारे अगल बगल में, पास पड़ोस में क्‍या कुछ ऐसा है , जिसे संरक्षित एवं सहेजने की जरूरत हैं,

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