बिहार में पपीते के साथ  हो रही है सेव की खेती

बिहार में सेव की खेती हो रही है, सुनने में आपको यह अटपटा जरूर लग रहा होगा, लेकिन यह सच है, कि काश्‍मीर की ठंडी फिजाओं में होनेवाली सेव की फसल बिहार में  जेठ की तपती दुपहरी, एवं बरसात के साथ साथ इस ठंड में भी यहां लहलहा रही है, फूल और फल लगना शुरू हो चुका है,यह कमाल बिहार के युवा किसान हर्ष रंजन उर्फ सोनू जी ने अपने मेहनत के बल पर इसे, साकार करके दिखाया है,

     बिहार में सेव की फसल लहलहा रही है,  फूल और फल के साथ, एकबारगी यह विश्‍वास नहीं होता है, लेकिन सेव की लहलहाती यह फसल आज हकीकत बन चुका है, बिहार के मुजफ्फरपुर जिला में,  सकरा प्रखण्‍ड के हसनपुर बंगाही गांव के किसान हर्ष रंजन उर्फ सोनू जी के ही परिश्रम का फल है कि आज बिहार की धरती पर सेव की खेती का सपना साकार हो रहा है,

हर्ष रंजन उर्फ सोनू जी के द्वारा खेती में तरह तरह के प्रयोग करने का ही परिणम है कि हर्ष रंजन जी ने सेव की खेती के लिए कदम बढ़ाया, और प्रयोग के तौर पर आधे एकड़ जमीन में पहली बार 125 सेव के पौधे को लगाया । इतना ही नहीं, सेव के साथ इन्‍हों ने पपीते की खेती कर डाली, और इतने से  भी मन नहीं भरा तो पपीता एवं सेव की क्‍यारीयों  के बीच खाली जगहों में मिर्चा की खेती भी कर डाला, आज खेत में खाली जगहों के बीच इन्‍होंने मसूर दाल की बुआई किया है,  

एक साथ तीन फसल, यह सब ऐसे ही नहीं हुआ है, हर्ष रंजन उर्फ सोनू जी के द्वारा खेती में तरह तरह के प्रयोग किये जाने  का ही परिणम है कि इन्‍होंने खाली जगहों पर , फसल चक्र के समय का सदुपयोग किया, और सेव के साथ इन्‍हों ने पपीता मिर्चा, और दाल की खेती कर डाला ,

कड़ी मेहनत के बाद सेव के इन पौधे पर फूल व फल देख कर आज बिहार के रहने वाले सभी लोगों का मन बाग बाग हो रहा होगा,  हर्ष रंजन उर्फ सोनू जी ने 20 फरवरी 2022 को हरमन 99 प्रजाति के 125 सेव के पौधों को इस बगान में लगाया था,जिसमें से 30 पौघे सूख गये, बाद में इन्‍होंने 70 पौधें और लगाये,

सोनू जी के अनुसार बिहार में सेव की खेती किया जा सकता है,  इन्‍होंने सेव की खेती में किसी भी प्रकार का रासायनिक खाद का प्रयोग नहीं किया है, पूर्णत: जैविक तरीके से इन्‍होंने सेव की बागवानी करके मिशाल कायम किया है ।

     बताया जाता है कि सेव  का एक  पौधा  तीन साल में फलदार पेड़ बन जाता है  इसका  फल थोड़ा  लम्बा होता है,  पेड़ का आकार अमरूद कि तरह होता है,  पौधे में कीड़े न पकड़े उसको लेकर कीटनाशी के जगह कीटों को ट्रैप करने वाली मशीन का इन्हों ने इस्‍तेमाल किया है, यह मशीन एक लैम्प नुमा आकार के डब्बे जैसा दिखता है उस डब्बे में मादा कीड़ा की सुगंध रहती है, और इसी सुगंध के हनी ट्रैप के चक्कर में सारे कीड़े डब्बे में फंस जाते है, खाद एवं कीटनाशी के जगह इन्हों ने जैविक खाद का इस्‍तेमाल किया है,सबसे बड़ी बात यह है कि गर्मी के इस मौसम में  टेप्प्रेचर मेंटेन एवं सिंचाई के लिये खेत की चारो ओर पानी के पाईप लाइन का कनेक्शन किया गया है, सेव के फसल में समय समय पर सिंचाई का बहुत ज्‍यादा अहमियत है,  

 सेव के इस बगान में सेव का लहलहाता पौधा है, फूल एवं फल से लदे पौधे आंखों को शूकुन दे रहे हैं, पपीते के साथ सेव की खेती किये जाने का यह पूरक प्रयोग हर मायने में फायदेमंद है,  सेव की दो क्‍यारियों के बीच की खाली जगहों का सदुपयोग हो जाता है,वहीं पपीता एवं सेव दोनों को सिंचाई की आवश्‍यकता एक समान है,इसलिए सिंचाई भी साथ साथ हो जाती है, ज्‍यादा पानी दोनों के लिए नुकसानदेह हैं,  पपीते के साथ सेव की खेती आय के दृष्टिकोण से  आज फायदेमंद साबित हो रहा है, सेव की यह फसल  अप्रैल मई में तैयार होगा, तब तक बीच बीच में पपीते से किसान को कुछ न कुछ इनकम होता रहता है,   

बिहार में सेव की खेती, बिहार के किसानों के लिए,  उम्‍मीद और आशा की किरण है,  मुज़फ़्फ़रपुर जिला के सकरा प्रखंड स्थित बगाही गांव में हर्ष रंजन उर्फ सोनू जी ने सेव का बगान लगाकर बिहार के किसानों का आत्मविश्वास बढ़ा दिया  है, बिहार की मिट्टी सेव की खेती के लायक है,  बरसात की झपसी, से लेकर गर्मी में  46 से 47 डिग्री के टेम्परेचर के बावजूद बिहार के क्लाइमेट में किसान सेव की खेती कर सकते हैं,  सेव की खेती का प्रयोग  और पपीते के साथ खेती का विकल्‍प अब यहां के किसानों के पास उपलब्‍ध है, बिहार के किसान भी अब सेव बेच कर लाखो रुपये कमा सकते हैं ।

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