नेपाल के पशुपतिनाथ मंदिर की तरह दिखेगा, खगेश्‍वरनाथ महादेव मंदिर

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    खगेश्‍वर नाथ महादेव मंदिर का बाहरी स्‍वरूप बदलेगा

    भगवान विष्‍णु के वाहन गरूड़जी के निवास स्‍थल के रूप में प्रसिद्ध है खगेश्‍वर नाथ महादेव मंदिर

    बिहार के मुजफ्फरपुर जिला अर्न्‍तगत बन्‍दरा प्रखण्‍ड स्थित,  मतलुपुर में बाबा खगेश्‍वर नाथ महादेव मंदिर का बाहरी स्‍वरूप बदलने जा रहा है, अब इस मंदिर का बाहरी स्‍वरूप नेपाल के पशुपति नाथ मंदिर की तरह दिखेगा, इसके लिए बकायदा कार्य प्रारम्‍भ हो चुका है,सभी निर्माण कार्य भक्‍तों के द्वारा दिए गए सहयोग राशि से कराये जा रहे हैं,  

    खगेश्‍वर नाथ महादेव मंदिर के मुख्‍य गर्भ गृह के चारो ओर निर्माण कार्य तेजी से चल रहा है, इस बीच मंदिर प्रांगण में किये जा रहे निर्माण कार्य के बीच मंदिर प्रांगण में नींव के लिए खुदाई किया गया है, इसमें पूर्व में निर्माण किए गये, इसके तीन लेयर का पता चल रहा है, जिससे इसकी प्राचीनता पर संदेह करने वाले लोगो को अब इसका जबाव खुद मिलने लगा है, 

    बाबा खगेश्‍वर नाथ महादेव मंदिर के बाहरी स्‍वरूप को और भव्‍य बनाने के लिए गर्भ गृह के चारों ओर करीब बारह फीट की गहराई में खुदाई किया गया है, जिसमें यहां इसके चारों ओर दिवाल की संरचना मिला है, वहीं मंदिर के नींव  की निचली संरचना देखने पर ऐसा लगता है कि इसका पुर्ननिर्माण अब तक तीन बार हो चुका है, मंदिर परिसर से निकला हुआ ईंट जो सबसे उपर करीब चार फीट के आस पास दिखाई दे रहा है, वह हिस्‍सा करीब दो से तीन सौ साल पुराना है, वहीं चार फीट के नीचे  और करीब आठ फीट के आस पास  का जो लेयर है, वह करीब आठ सौ साल पुराना बताया जा रहा है,

    मंदिर के गर्भ गृह का भूतल वर्तमान में भूतल से करीब दस  फीट नीचे है, और अभी जहां लाल पत्‍थर से बना शिवलिंग स्‍थापित है, उसके नीचे का आधार तल कम से कम तीन से चार फीट होने का अनुमान है, गर्भ गृह का दरवाजा, सीढ़ी और भूतल कसौटी पत्‍थर से निर्मित है, पुरातत्‍वविदों की मानें तो  शिवलिंग और शिवलिंग का आधार तल तीन हजार साल से पैंतीस सौ साल पुराना है,

    इस स्‍थल से पूर्व में प्राप्‍त  मूर्ति और उपस्‍करनुमा सामान  जो काले पत्‍थर के बने हुए है, उसे मंदिर में ही स्‍थापित किया गया है, पुरातत्‍व विभाग इसे पाल कालीन मान रहा है, जो भी हो, पहले से प्राप्‍त अवशेष, और बाबा खगेश्‍वर नाथ महादेव मंदिर प्रांगण में किये जा रहे निर्माण कार्य के बीच, एक बार फिर इसकी आंतरिक संरचना के तीन स्‍तर, खुदाई के दौरान देखने के मिला है,

    इसके बाद इतना स्‍पष्‍ट रूप से कहा जा सकता है कि मंदिर का स्‍वरूप समय समय पर बार बार बदलता रहा है, और अब आने वाल कुछ ही समय में इस मंदिर का  बाहरी स्‍वरूप बदलकर नेपाल के पशुपति नाथ मंदिर की तरह हो जाएगा,

     मंदिर परिसर में बकायदा पशुपतिनाथ मंदिर के प्रतिकृति का चित्र लगाया गया है, 1986 के आस पास  यहां के कुछ भागों में पर्यटन विभाग के द्वारा खुदाई किया गया था, खुदाई के दौरान  इसका निर्माण, समय समय पर किये जाने का प्रमाण मिलता रहा है,  

    मतलुपुर में बाबा खगेश्‍वर नाथ महादेव मंदिर में जो शिवलिंग स्‍थापित है, वह लाल पत्‍थर का बना हुआ है, इस तरह का शिवलिंग रामेश्‍वरम,एवं विश्‍वनाथ धाम में ही है और, तीसरा लाल पत्‍थर का शिवलिंग मतलुपुर में बाबा खगेश्‍वर नाथ महादेव मंदिर में स्‍थापित है, इसकी एक खास विशेषता इस मंदिर को देश में इकलौता पहचान प्रदान करती है, वो यह है कि यहां माता पार्वती का स्‍वरूप भी लिंग रूप में है, जो अब तक कहीं और नहीं देखा गया है, हांलाकि यह खंडित अवस्‍था में है, लेकिन माता पार्वती का लिंग स्‍वरूप इस खंडित मूर्ति का पूजा विधान के साथ किया जाता है, माता पार्वती का लिंग स्‍वरूप खंडित यह मूर्ति पुरातात्‍विक महत्‍व के होने के कारण इसके स्‍वरूप को यथावत रखा गया है, और बगल में ही 1950 इस्‍वी में  माता पार्वती का शिव को नमन करने की मुद्रा में,  स्‍वरूप रूप में स्‍थापित किया गया है,  

    मतलुपुर में बाबा खगेश्‍वर नाथ महादेव मंदिर के उत्‍तर पूर्व की दिशा में, मंदिर परिसर की भूमि में ही, यहां एक श्‍मशान है, जहां शवों को जलाया जाता है, स्‍थानीय लोगो के बीच यह श्‍मशान पूरनी पोखर के नाम से जाना जाता है, शिव मंदिर में श्‍मशान की परम्‍परा काशी विश्‍वनाथ धाम के अलावे अन्‍यत्र नहीं देखा जाता है, कहा जाता है कि मतलुपुर में ही इसी जगह पर भगवान विष्‍णु के वाहन गरूड़जी का पृथ्‍वी लोक पर निवास स्‍थल था, यह स्‍थल विष्‍णु लोक एवं शिव लोक से जुड़ी कई घटनाओं का साक्षी रहा है,  

    इस मंदिर की एक और विशेषता यह है कि यहां गरूड़ की अत्‍यंत प्राचीन प्रतिमा स्‍थापित है, जो खुदाई के दौरान प्राप्‍त हुई थी, मान्‍यता है कि रामायण में वर्णित राम एवं लक्षमण को नाग पाश से मुक्‍त करने वाले, गरूड़जी महाराज को भगवान राम के अवतार रुप पर शंका हो गाया था, गरूड़जी  का शंका समाधान यहीं पर भगवान शंकर से संवाद के बाद हुआ था, और यहीं कारण है कि यह स्‍थल खगेश्‍वरनाथ के नाम से प्रसिद्ध हुआ ,         

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