पूर्वी मुजफ्फरपुर के एक मात्र अगस्त क्रान्ति के शहीद, अमीर सिंह की शहादत को उचित सम्मान नहीं ,
ना हो अभी, मगर आखिर तो कदर होगी मेरी,
खुलेगा हाले गुलाम आप पर, गुलाम के बाद,
हसरत मुहानी का यह शेर है, ना हो अभी, मगर आखिर तो कदर होगी मेरी,खुलेगा हाले गुलाम आप, पर गुलाम के बाद, इस शेर को समझने के लिए दिमाग पर बल लगाने की जरूरत नहीं है,जिसने गुलामी की दासतां को भोगा है, समझा है, वहीं समझ सकता हैं कि गुलामी क्या चीज है, आजाद भारत की खुली हवा में सांस लेने वाले लोगों के लिए गुलामी की पीड़ा को समझना थोड़ा कठिन हो सकता है,लेकिन मुश्किल नहीं,
ज़लालत की चीज गुलामी, जिससे आजादी की कीमत प्राणों से भी ज्यादा है, देश के लिए अपने को होम करने वाले, आजादी के लिए वतन पर शहीद होने वाले वीर भी, हम लोगो की तरह ही हाड़ मांस के रहे होंगे, उनका भी परिवार रहा होगा, परिवार के दसियों लोगों का भविष्य सीधा उनसे जुड़ा रहा होगा, जरा सोचिए उस सुहागिन का जिसकी शादी के दो माह भी पूरे नहीं हुए और पति के वियोग में अन्न जल छोड़कर मात्र सातवें माह बाद प्राण त्याग देती है, दरभंगा जिला के सिंहवाड़ा थाना के मोहना गांव की जयमाला देवी, शादी की खुशी का पहला वर्षगांठ अपने परिवार के साथ नहीं मना पाई, आखिर क्यों,
सिर्फ इसलिए की उनकी हस्ती मिटा दिया जाए, नामों निशान खत्म कर दिया जाए, जीते जी जिसने गुलामी का दंश झेलने से अच्छा लाखों लोगों के सम्मान के लिए खुद को बलिदान करना श्रेयस्कर समझा, ऐसे वीर के लिए अपमान, क्या थाती है ? देश के लिए दी गई शहादत के बदले हमने उनको क्या दिया है,
आजाद भारत के स्थानीय अफसर, नेता, पद पर आसीन जन प्रतिनिधिगण, समाज के जिम्मेवार रहनुमा, जरा आप भी एक बार, सोचिए तो सही, पूर्वी मुजफ्फरपुर के एक मात्र, अगस्त क्रान्ति के शहीद अमीर सिंह के जन्म स्थल एवं शहादत स्थल की दशा एवं दुर्दशा देखकर, आप कितनी बार मुंह चुराकर निकले हैं, आप जरा याद किजिए,
माना कि आपको जिम्मेवारी है, समय का आभाव है, पर देश के लिए शहीद होने वालों के लिए, यह बेरूखी अगली पीढ़ी के लिए इतना भारी होगा कि गुलामी की लानत पर भी उसका सर शर्म से झुका रहेगा,
पूर्वी मुजफ्फरपुर के एक मात्र, अगस्त क्रान्ति के शहीद अमीर सिंह के जन्म स्थल की हालत देखिए, परिवार के लोग जैसे तैसे अमीर सिंह के घर एवं उनकी यादों को बचाये रक्खा हैं, बन्दरा के नुनफरा निवासी, अमीर सिंह के शदादत के नाम पर पुश्तैनी मकान, के अलावे दो बातें बस नाम मात्र की हैं, पहला गांव के एक विद्यालय का नाम अमीर सिंह के नाम पर प्रस्तावित, और दूसरा अमीर सिंह के नाम पर जर्जर शहीद द्वार,

गांव के विद्यालय का नाम अमीर सिंह के नाम पर प्रस्तावित, होने की बात में सच्चाई यही है कि, नुनफरा के लोगों ने शहीद अमीर सिंह के सम्मान में गांव के विद्यालय का नाम, अमीर सिंह के नाम पर रख कर, विद्यालय का नामाकरण कर दिया, स्थानीय जनप्रतिनिधियों ने अपनी पीठ खुद ठोंक कर खूब वाह वाही लूटी, लेकिन सरकारी कागज पर गांव की वैमनस्यता ने अमीर सिंह का नाम आज तक दर्ज नहीं होने दिया, अब हालत यह है विद्यालय की दिवाल पर लिखा नाम भी मिट चुका है,या यॅू कहे कि शहीद अमीर सिंह के नाम पर अब कुछ भी नहीं है।
नूनफरा में ही अमीर सिंह के नाम पर बना शहीद द्वार आज जर्जर हो चुका है, जगह से जगह से इस शहीद द्वार का पलास्टर झड़ रहा हैं, शहीद द्वार अब खंडहर होने के कगार पर है, पर बद किस्मती कहिए कि बनने के बाद से आज तक मरम्मत तो दूर किसी माननीय के द्वारा हजार रुपया खर्च करके इस शहीद द्वार का रंग रोगन नहीं कराया जा सका, अमीर सिंह के शहादत के 52 वर्षों के बाद 1994 में बंदरा प्रखंड मुख्यालय से चार किलो मीटर उत्तर मुजफफरपुर जाने वाली सड़क पर, जहां से नूनफरा गांव के लिए एक सड़क निकलती है, तत्कालीन राजस्व एवं समाज कल्याण मंत्री रमई राम ने इस शहीद के नाम पर एक शहीद द्वार का निर्माण करा कर एक ढांचा खड़ा कर दिया, लेकिन आगे चलकर इस क्षेत्र से कई बार विधायक बनने के बाद भी, वे शहीद द्वार का रंग रोगन नहीं करा सके, आज अमीर सिंह शहीद द्वार जर्जर हालत में है । आज इसकी मरम्मत की चिंता न अब के स्थानीय विधायक को है, और न ही मुखिया, सरपंच, पंचायत समिति, एवं जिला पर्षद का प्रतिनिधित्व करने वाले स्थानीय जन प्रतिनिधियों को।
ब्रिटिश हुकुमत के खिलाफ लड़ने वाले शहीद अमीर सिंह की वीरगाथा इतिहास में दर्ज है, 9 अगस्त 1942 को महात्मा गांधी समेत देश के अधिकांश बड़े नेता गिरफ्तार कर लिए गये थे । गांधी जी द्वारा ‘करो या मरो’ का नारा दिया जा चुका था । नेता विहीन आंदोलनकारियों की समझ में जो आया वही किया । सशस्त्र क्रांति के समर्थक जो सत्याग्रह आंदोलन में विश्वास नहीं करते थे, वे भी इस आंदोलन में कूद पड़े, तोड़-फोड़ शुरू हो गया । संचार व्यवस्था भंग की गयी , रेल तार उखाड़े जाने लगे । अमीर सिंह की शहादत का भी वही दौर था । 11 सितम्बर 1942 का दिन । उस दिन स्थानीय स्वतंत्रता सेनानियों की सभा का आयोजन सकरा प्रखण्ड कांग्रेस आश्रम में सिया बाबू की अध्यक्षता में हुआ था, स्वतंत्रता सेनानियों की उत्साही जमात सबसे पहले ढोली रेलवे स्टेशन पर तिरंगा फहरा दिया एवं रेल की पटरियां उखाड़ते एवं संचार व्यवस्था ठप करने के लिए तार काटने के बाद नारा लगाते हुए, सकरा थाना पर तिरंगा फहराने के लिए आगे बढी, तत्कालीन थानेदार दीपनारायण सिंह की लाख चेतावनियों के बाद भी 11 अगस्त 1942 को उन लोगों के द्वारा सकरा थाना पर तिरंगा फहराया दिया गया ।
अंगरेज अफसरो को घटना की सूचना के बाद, इन आन्दोलन कारियों के दमन के लिए अंगरेजी पुलिस सकरा के लिए प्रस्थान कर चुकी थी, लेकिन आजादी की लड़ाई के रंग में रंगे इन उत्साही जमात का हौसला पस्त नहीं हुआ, तब तक अंगरेज पुलिस सकरा पहॅुच चुकी थी, तीस वर्ष के अमीर सिंह जान की परवाह किये बिना, सकरा सब निबंधन कार्यालय पर झंडा फहराने पहुंच गए। इसी क्रम में वे ब्रिटिश पुलिस की गोली सीने पर खाकर शहीद हो गए। अमीर सिंह पर गोली चलाने वाला वह पुलिस कौन था, इस सम्बन्ध में जानकारी नहीं मिल पाया है, लेकिन स्थानीय अंग्रेज प्रशासक ई सी डैन्वी ने ढ़ोली स्थित अपने आवास पर क्षेत्र में गस्त के लिए अंगरेज पुलिस की टुकड़ी रिजर्व रक्खे हुए था, और उसी के आदेश पर सकरा में आन्दोलन को कुचलने के लिए अंगरेज पुलिस की टुकड़ी ने गोली चलाई थी, अंग्रेज प्रशासक ई सी डैन्वी का आवास अब तिरहुत कृषि महाविद्यालय ढ़ोली का हिस्सा है, और इसमें कृषि महाविद्यालय ढ़ोली का गेस्ट हाउस संचालित है, विडम्बना यह है कि गुलामी का प्रतीक ई सी डैन्वी का आवास आजाद भारत में आज भी चमचमा रहा है, वहीं शहीद अमीर सिंह का जन्म स्थल खण्डहर होने के कगार पर है,
आजाद भारत में ऐसी मानसिकता के नमूना का उदाहरण सकरा मुरौल एवं बन्दरा प्रखण्ड मुख्यालय में लगे स्वतंत्रता सेनानियो के नाम के शिलापट्ट में भी देखने को मिल रहा है, आजादी के आन्दोलन में हजारीबाग बाग जेल की हवा खाने वाले, एवं शहीद होने वाले अमीरी सिंह को इस शिलापट्ट में स्थान नहीं दिया गया, त्याग तपस्या, वीरता एवं अपने को उत्सर्ग करने की महत्ता के आदर्श को स्थापित करने वाले अमीर सिंह के साथ यह सौतेला व्यवहार क्यों किया जा रहा है,समझ से परे है, अगस्त क्रन्ति के समय, सकरा थाना क्षेत्र में आज का सकरा , मुरौल एवं बन्दरा प्रखण्ड भी शामिल था, अमीर सिंह की शहादत को न सकरा प्रखण्ड और न ही मुरौल प्रखण्ड में लगे स्वतंत्रता सेनानियो के नाम की शिलापट्ट में दर्शाया गया है, बन्दरा प्रखण्ड मुख्यालय में स्वतंत्रता सेनानियो के नाम का शिलापट्ट लगना अभी बाकी है,
आश्चर्य तो तब होता है जब शहीद के सम्मान के लिए भी लोगों को संघर्ष करना पड़ा, शहीद को सम्मान दिलाने के लिए भी लोगों को लम्बी लड़ाई लड़नी पड़ी । अमर शहीद अमीर सिंह स्मारक समिति ने सकरा निबंधन कार्यालय परिसर में स्मारक निर्माण के लिए काफी संघर्ष किया। जिसके फलस्वरूप 76 वर्षों के बाद 2019 में अमीर सिंह की प्रतिमा का निर्माण शहादत स्थल पर हो सका है,प्रतिमा के लोकार्पण समारोह, 21 जनवरी के दिन अच्छे खासे लोग जमा हुए, लेकिन आगे चलकर यह कार्यक्रम सिर्फ शहीद अमीर सिंह स्मारक समिति के सदस्य एवं निबंधन कार्यालय के कातिबों के अलावे शहीद अमीर सिंह के परिजनों के बीच ही सिमट कर रह गया,पचास मीटर की दूरी पर निबंधन कार्यालय, एवं सौ मीटर की दूरी पर सकरा थाना, एवं सकरा प्रखण्ड का कार्यालय है, लेकिन दो पुष्प अर्पित करना यहां के अधिकारियों के सरकारी कार्यक्रम में शामिल नहीं है, सो वे अधिकारी यहां कैसे पहॅुच सकते हैं, सौ मीटर की दूरी पर ही कांग्रेस आश्रम है, क्षेत्र में कांग्रेसी नेताओं की भी कमी नहीं है,लेकिन नई पीढ़ी के इन स्थानीय कांग्रेसी नेताओं में शायद खुद अपने विरासत का ज्ञान नहीं है, और यहीं पर भाजपा वाले बाजी मार ले जाते हैं,
वर्ष 1993 में भारत छोड़ो आन्दोलन के स्वर्ण जयन्ती समारोह के अवसर पर रेल मंत्रालय भारत सरकार के द्वारा ढोली रेलवे स्टेशन पर शहीद अमीर सिंह के जीवन वृत उकेरने एवं रेलवे स्टेशन पर चित्र लगाने का प्रस्ताव तत्कालीन रेल मंत्री सी के जाफर शरीफ के द्वारा पत्राचार के माध्यम से परिजनों को भेजा गया था, जिसमें मांगी गई वांछित जानकारी परिजनो के द्वारा भेजा गया था, इसमें अमीर सिंह के परिजनो के द्वारा ढोली रेलवे स्टेशन का नामाकरण शहीद अमीर सिंह के नाम पर करने का करने का प्रस्ताव भेजा गया था,पर यहां भी शहीदों के सम्मान में कुछ भी आज तक नहीं किया जा सका,