मुजफ्फरपुर के सकरा प्रखण्ड में राम जानकी स्टेडियम निर्माणाधीन है, और यह लहरगामा पंचायत के राम जानकी मठ के समीप लोहरगामा पुरातात्विक स्थल के उपर बनाया जा रहा है, यहां स्टेडियम निर्माण के दौरान ईंट, लोहरी, सिलौटी, चक्की, एवं अनेक प्रकार के मृदभांड जेसीबी से खुदाई के दौरान उपर आ गये हैं, यहां कंकाल के अवशेष अब भी कई जगह दिख रहे हैं, जिसकी जांच की आवश्यकता है, ऐसा ल्रगता है कि इस स्थल के पुरातात्विक महत्व को दरकिनार करके, इसके आस पास बिना सोचे समझे विभिन्न निर्माण करा कर, लोहरगामा के इतिहास को रौंदा जा रहा है,
मुख्य डीह पर विद्यालय, पंचायत सरकार भवन, नलकूप आदि, बना दिए गये हैं, इसके सटे अभी स्टेडियम निर्माणाधीन है, स्टेडियम के अंतिम छोर पर पूरब की ओर विद्यालय से करीब पांच सौ मीटर दूर दीवाल की संरचना मिली है, जिससे इस पुरातात्विक स्थल का दायरा और भी बड़ा होने का संकेत मिल रहा है,

पुरातात्विक स्थल लहरगामा के विकास का समय प्राचीन मध्यकाल में होने कर अनुमान है, इस समबन्ध में एक महत्वपूर्ण जानकारी यह है कि इस स्थल को बिहार सरकार के पुरातत्व एवं ऐतिहासिक अनुसंधान से सम्बंधित संस्था, के पी जायसवाल रिसर्च इन्स्टीच्यूट पटना के द्वारा, कैटलॉग ऑफ आर्केलाजिकल साइटस इन बिहार के, भाग दो के पृष्ट दस एवं गयारह पर सकरा प्रखण्ड की सूची में इसे नौवें स्थान पर वर्णित किया गया है, जहां इस डीह का रकबा 45 हजार वर्गमीटर एवं उचाई ढ़ाई मीटर होने की जानकारी दी गई है,
आज से करीब पैंतीस वर्ष पहले मुख्य डीह की उचाई करीब पन्द्रह फीट से ज्यादा थी,जो अब बमुश्किल तीन फीट रह गया है, इस डीह के उपर एक कुआं था, जो आज मिट्टी से भरा जा चुका है,वहीं इस डीह से दो सौ मीटर उत्तर में एक तालाब दयनीय दशा में है,पास ही, इसके पूरब, कदाने नदी है,
पुरातात्विक स्थल लहरगामा से यदा कदा हमेशा कुछ न कुछ अवशेष प्राप्त होते रहते हैं, जिसके संरक्षण की ललक न यहां के गण मान्य लोगों में है, न ही स्थानीय अधिकारियों की इसमें रुचि है, जिसके कारण यहां से प्राप्त पुरातात्विक अवशेष नष्ट हो रहे हैं, पुरातात्विक स्थल लहरगामा डीह से कंकाल के अवशेष तक प्राप्त हो रहे हैं,
लहरगामा शब्द में गामा शब्द इसे बौद्ध धर्म से जुड़े स्थल होले का संकेत करते हैं, जिस पर गंभीर शोध किए जाने की आवश्यकता है, यहां इस स्थल के आस पास के खेतों से लाल मृदभांड के टुकड़े, कौरी, सिलौटी, लोढ़ी, जांता के अलावे, कई जगहों पर दीवाल होने की जानकारी सामने आ रही है, इन वस्तुओं के महत्व से अनजान लोगों के लिए इसका कोई महत्व नहीं है, यहां से प्राप्त जांता से एक किसान खूंटा ठोकने का काम ले रहे है,

मुख्य डीह से करीब पांच सौ मीटर दूर पूरब की ओर दीवाल की संरचना मिली है, जिसमें लगे ईंट की लम्बाई 35 सेमी है, वही इसकी चौड़ाई 14 सेमी एवं मोटाई 06 सेमी है, स्टेडियम निर्माण के दौरान पूर्वी दिवाल के पास इस तरह के सैकड़ो ईंट, जेसीबी से खुदाई के दौरान सतह पर आ गये थे, जिसे मजदूरों के द्वारा ईंट के इन अवशेषों को पुन: नींव के अंदर दबा दिए गये, हांलाकि ईंट से बनी संरचना यानि दीवाल का अवशेष जमीन के अंदर कई जगहो पर होने की चर्चा ग्रामीणों से बात चीत के दौरान मिली हैं,

लहरगामा डीह से जिस साइज के ईंट प्राप्त हुए हैं, ठीक इसी प्रकार के ईंट भसौन के राम जानकी मठ के अलावे इस क्षेत्र के एक अन्य पुराने मंदिर मतलुपुर शिव मंदिर के पुर्न निर्माण के दौरान प्राप्त हुए हैं, लहरगामा मुख्य डीह के नजदीक तालाब से लेकर डीह के आधे किलोमीटर के दायरे में विशेष अनुसंधान की आवश्यकता है,
ऐसा ल्रगता है कि इस स्थल के पुरातात्विक महत्व को दरकिनार करके, इसके आस पास बिना सोचे समझे विभिन्न भवनों का निर्माण करा कर, लोहरगामा के इतिहास को रौंदा जा रहा है, पुरातात्विक महत्व के इस स्थल के साथ छेड़ छाड़, विरासत को बर्बाद करने का अपराध है,
जो भी हो, बचे खुचे कुछ ईंट अब भी बाहर रह गये हैं, और चीख चीख कर लहरगामा की विरासत और धूल में लिपटे इतिहास की गवाही दे रहा हैं, हम अपने दर्शकों /पाठकों को कुछ मिनट के लिए अतीत में ले जाना चाहेंगे, और हम यह कहना चाहेंगे कि इन ईंटो को देखिए, और जरा कल्पना किजिए कि यह किसके राजमहल का ईंट है,या फिर यह किसी पुराने मंदिर का अवशेष है, जो काल के किसी आघात से ध्वंस हो गया है, जमीन में किसका कंकाल दबा है, किसके किचेन का लोहरी, सिलौटी, चक्की बार बार सामने आकर क्या कह रहे हैं, आज लहरगामा की मिट्टी को अपने उद्धारक की तलाश है, आखिर क्या है इस स्थल का इतिहास, कैसे जमींदोज हो गया लहरगामा का यह विरासत,