वटगोस्‍वामी के समीप रेत पर बैठकर भक्‍तगण लगाते हैं ध्‍यान,

नजरो की अठखेलियों पर विराम लग जाता है, कदम अनायास ही ठिठक कर रुक जाते हैं, दूर से ही उच्‍च शिखर पर फहराते  ध्‍वज का आर्कषण, उस ओर हठात खींच कर ले जाता है।

और जब हम उसकी छाया में पहॅुच जाते हैं, तो एक असीम शान्ति का अनुभव होने लगता है, कुछ बात तो है कि, लोग इसके आकर्षण में बार बार चले आते हैं, और यह शान्ति,  यहां हर बार बढ़ती ही जाती है, लोग आते हैं,ध्‍यान करते है़, अर्जी लगाते हैं, और जीवन पथ पर बढ़ने की नई उर्जा प्राप्‍त कर कर्म पथ पर लीन हो जाते है, मैं बात कर रहा हॅू बिहार के मुजफ्फरपुर जिला के सकरा प्रखण्‍ड से होकर गुजरने वाली एन एच 28 के सटे डिहुली गांव स्थित त्राहि अच्‍युत आश्रम की,

आश्रम के प्रांगण में, भगवान जगन्‍नाथ  मंदिर के उपर लहराता शिखर ध्‍वज यूं तो करीब एक किलोमीटर दूर एन एच 28 स्थित निकटवर्ती पिपरी चौक से ही दिखाई पड़ने लगता है, लेकिन जब हम मंदिर परिसर में प्रवेश करते है, तो दीवारों पर दक्षिण शैली में बनी कलाकृति,  उत्‍तर की इस भूमि पर एक अतिरेक आन्‍नद प्रदान करती  है,

इसका संबंध यूं तो, उड़ीसा के पुरी एवं बालाकोट स्थित भगवान जगन्‍नाथ मंदिर से होने के अलावे, कइ एक बात ऐसी हैं, जो कदम कदम पर आपको, यहां ऐसा महसूस होगा कि हम पुरी स्थित  भगवान जगन्‍नाथ  मंदिर के सानिंध्‍य में है,

 वैसे इस आश्रम के सेवादार एवं अन्‍य कर्मी मिडिया से दूरी बना कर रखते हैं, जब हम पहली बार इस मंदिर में दाखिल हुए, तो मंदिर के सेवादार  मिडिया से बात करने से  साफ मना कर दिए,  हमने जब इनसे कारण जानना चाहा तो, इन्‍हों ने अपने  नीतियों का हवाला देते हुए कहा कि – हम लोग हमारा आश्रम कर्म में विश्‍वास करता है, हम लोग प्रचार प्रसार में विश्‍वास नहीं करते हैं,

आश्रम की स्‍थापना का उद्देश्‍य भला के लिए है, प्रचार प्रसार की जरूरत व्‍यवसायी को पड़ता है, हमें नहीं, और इन्‍हों ने  कैमरा पर आने से साफ मना कर दिया,  हांला कि इन्‍होंने आश्रम के संचालक महात्‍मा कपिल जी से मिलवाया, महात्‍मा कपिल जी बात करने के लिए तैयार हुए, लेकिन बिना कैमरा के, कोई रिकॉर्डिंग नहीं, फिर भी हमें इनके मनोभाव को समझना जरूरी था, इसलिए हम उनकी बातों से करीब दो घंटा तक रूबरू हुए, हमने भी अपनी विवशता बताई, आखिर उनकी सदाश्‍यता, ने हमें छायांकन की अनुमति तो दे दी, लेकिन महापुरूष के निर्देश एवं आश्रम की नीतियों के कारण वे तत्‍काल कैमरा पर स्‍वयं आने से मना करते हुए, आश्रम के पुराने ट्रस्‍टी मेम्‍बर लालबाबू से  सहायता लेने को कहा,

और फिर उत्‍तर बिहार का एकमात्र इकलौता भगवान जगन्‍नाथ मंदिर डिहुली में विराजमान भगवान जगन्‍नाथ, बलभद्र, सुभद्रा, एवं सुदर्शन चक्र के दर्शन का सौभाग्‍य , दर्शको को पहली बार कैमरा पर दिखाने का अवसर न्‍यूज भारत टीवी को मिला, आज हम पहली बार मंदिर के गर्भ गृह का तस्‍वीर हम आपको दिखा पा रहे हैं,

मंदिर के बने हुए अभी ज्‍यादा वक्‍त नहीं बीते हैं, 31अक्‍टूबर 1992 को सबसे पहले गादी गृह का स्‍थापना किय गया, मात्र चार दशक में इसकी यशो गाथा लोगों के जुवानी ही प्रसार लेता रहा, प्रचार प्रसार से दूर इस आश्रम का उद्देश्‍य कभी प्रचार प्रसार करना, रहा भी नहीं,                                                        

साल में पांच बार मंदिर प्रांगण में विशाल कार्यक्रम का आयोजन होता है, जन्‍माष्‍टमी, राधाष्‍टमी एवं वैशाख कृष्‍ण पक्ष में अष्‍ट प्रहरी जन्‍मोत्‍सव के अलावे 31 दिसम्‍बर को स्‍थपना दिवस एवं फाल्‍गुन शुक्‍ल पक्ष में वार्षिक यज्ञ का आयोजन यहां बड़े ही धूम धाम से किया जाता है ।

भगवान जगन्‍नाथ मंदिर डिहुली में वटगोस्‍वामी की परिक्रमा करके भक्‍त अपने मन की बात इष्‍ट देव तक पहॅुचाते हैं,

भगवान जगन्‍नाथ  मंदिर के ठीक सामने यज्ञ मंडप बना हुआ है, दाहिने ओर वटगोस्‍वामी एवं उसके ठीक सामने सभा मण्‍डप है, यहां खास बात यह है कि आगन्‍तुक भक्‍त लोग वटगोस्‍वामी के समीप रेत यानि बालू पर ही बैठकर ध्‍यान करते हैं, और वटगोस्‍वामी की परिक्रमा करके अपने मन की बात को इष्‍ट देव तक पहॅुचाते हैं,

भगवान जगन्‍नाथ मंदिर डिहुली का निर्माण भुवनेश्‍वर  के कारीगरो के द्वारा किया गया है,दक्षिण की शैली में बने इस आधुनिक मंदिर में नक्‍काशी का काम बहुत ही खुबसूरती के साथ किया  गया है, मंदिर की हर एक प्रतिमा जीवन्‍त हो गई है, मंदिर के मुख्‍य द्वार के ठीक सामने  अरूण स्‍तम्‍भ है , सिंह द्वार पर द्वारपाल जय विजय,  भैरव जी के साथ सदैव उपस्थित हैं,

मंदिर के भीतरी परिसर में प्रवेश करते ही सबसे पहले गरूड़ स्‍तम्‍भ दिखाई देता है, मंदिर के प्रथम खण्‍ड यानि  प्रार्थना कक्ष में  भगवान कृष्‍ण के जीवन से घटित घटनाओं का जीवन्‍त चित्रण किया गया है, जन्‍म के उपरान्‍त वसुदेव के द्वारा श्री कृष्‍ण को यमुना पार करके नन्‍द गांव पहुंचाने की घटना के अलावे, पूतना वध,  बकासुर वध, कलिया नाग का नाथना, गोपियों के यमुना स्‍नान के अलावे , श्री कृष्‍ण के द्वारा गोवर्धन पर्वत उठाने ,एवं श्री कृष्‍ण के मथुरा गमन तक की घटनाओं का जीवन्‍त चित्रण किया गया है,इन चित्रों के उपर भी काली नव ग्रह, नव दुर्गा, आदि देवी देवताओं की मनोहारी प्रतिमा सज्जित है,

डिहुली में स्‍थापित भगवान जगन्‍नाथ मंदिर के गर्भ गृह में बाईं ओर बलभद्र , बीच में माता सुभद्रा, एवं उसके दाहिने ओर भगवान कृष्‍ण की मूर्ति एवं सुदर्शन चक्र स्‍थापित है, सभी मूर्तियां नीम की लकड़ी से बना हुआ है, और इन मूर्तियों को पुरी के बालाकोट से ही बनाकर भगवान जगन्‍नाथ मंदिर में स्‍थापित किया गया है ।

 भगवान के लिए रात्रि विश्राम हेतु बजाप्‍ता शयन कक्ष भी बनाया गया है, लाल रंग का चादर माता सुभद्रा, हरा वाला बलभद्र, एवं पीला चादर से युक्‍त बिछावन भगवान कृष्‍ण के लिए रखा गया है ।मंदिर में पूजा का विशेष विधान है, और एक विशेष प्रकार का पकवान भक्‍तों के बीच प्रसाद के रूप में वितरित  किया जाता है, जिसे दालमा कहा जाता है, जो मीठा खिचड़ी की तरह होता है,                             

     यहां भक्‍तों की रक्षा हेतु सूत्र बंधन का विधान है, भक्‍तों को महापुरूष के द्वारा मंत्र प्राप्ति एवं दिशा निर्देश दिया जाता है, तब जाकर सूत्र बंधन की प्रक्रिया पूरी होती है, और यह सब गादी गृह में ही संपन्‍न होता है, गादी गृह मंदिर परिसर का अहम भाग है,   

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